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Saturday, October 10, 2015

भारतके प्रधानमन्त्री मोदिजीको खुला पत्र

भारतके प्रधानमन्त्री मोदिजीको खुला पत्र

मोदिजी
नमस्कार

पिछले साल जब आप नेपाल आए थे तो हम नेपालियोँके लिए ऐसा लगा था कि वरषोँके बाद कोई अपना मेहमान अपना घर आया हो । क्युँकि भारतकी तरफ से लगभग १८ सालके बाद नेपालके भ्रमण करनेवाले आप पहले थे । हमलोगोँको ऐसा लग रहाथा कि भारत ऐसा देश है जो हमेँ छोडकर कहिँ दूर चलागया हो । लेकिन आपके आनेसे बहार सि आ गयी थी । हमलोग महिनोँतक आपकि भुरीभुरी प्रशँसा करते रहे । हमलोग बोले 'नेता हो तो ऐसा हो । अब देखना भारतकी विकास किस तरह से होता है और साथसाथ नेपालकी भि विकास उसी तरह होगी ।' सब एसे मीठे सपनेमेँ खोने लगे ।

लेकिन २०१५ कि अप्रिल महिनेकि महाभूकम्प ने नेपालको ऐसा हिला दिया कि थोडीसि चल रही देश जहाँकी तहाँ बैठ गयी । बहुतसे लोग मारे गए । बहुतसे लोग घायल हुए । बहुतसे लोग अपाँग हुए । नेपालकी पुरानी सम्पदा और धरोहर नष्ट हुआ । लेकिन ईस आपातकालिन समयमेँ भारतने ऐसा हात थामा ज्यूँ कोई हमसफर ने गिरते हुए दुसरा हमसफरका हात थामता हो । भारतकि सहृदयता और सहयोग लगायत विश्वकि अन्य देशोँकी मदतसे नेपाल थोडि सी चलमला उठी ।
ईसी प्रसँगमे नेपालको सहायत करने के लिए बहुराष्ट्र्यि सहयोग सम्मेलन दिल्लीमे करने सुझाव नेपालको मिली । परन्तु नेपालने ईसे सावधानी से मना करदिया । मना करना जायज था । क्योँकि बात नेपालकी थि । दिल्लीकि नहिँ थी । शायद यह बात आपको चुभ गयी । खैर आपने कुछ नहिँ बोला । शुक्रिया ।

दुसरी बार जब आप सार्क सम्मेलनमे भाग लेने हेतु नेपाल आरहेथे तब आप ने नेपालकी तराई होकर आनेकि बात कि । वह चाहना भि नेपालने हौले से मना करदिया । क्योँ कि ईसमे नेपाल सरकारको कुछ बदबु सा महसुश हुआ होगा । परन्तु आप कुछ नहिँ बोले । सार्क सम्मलेनमे बहुत अच्छे से भाषण दिए । सबका मन फिर जीतलिया । नेपाललियोँको डर था कहिँ आपकी नाराजगी बाहर न आए । लेकिन आप ऐसे दूरदर्शी निकले कि ईसबात कि जिकर तक नहिँ कि । फिर एकबार शुक्रिया ।

मगर ईस दुसरी भ्रमणके समयमेँ आपने जरुर कुछ ऐसा कहा जो नेपालीयोँके लिए कुछ सोचने कि बात थि । आपने कहा नेपालमेँ आरहे सँविधान सबकि सहमति से बनेगी । यह कुछ बात थि जो नेपालीयोँ ने अपनी भौँ खडे किया था । पर आपकि शालिनता और पहलेवाला भ्रमणका असर समझकर कोई नेपाली ने कुछ नहि कहा । अपितु ईसे आपकी सदाशयता समझ चुप बैठा ।

बहुत से लोग मारे जाने के बाद
, बहुत से उँचनिचके बाद, बहुत से राजनैतिक उतारचढावके बाद, अरबोँ रुपये बहानेके बाद, करिब आठसालके बाद नेपालके सँविधान सभाने बहुमतकेसाथ पारित किया हुआ सँविधान सितम्बर २० मेँ जारी किया गया । कहाजाता है कि यह सँविधान विश्वमे एक कहलानावाला सँविधान है । क्युँकि ईसमे समावेशी, महिलामैत्री, दलित आदि सबका उल्लेख कर अधिकार सुनिश्चित किया गया है । ईस सँविधानने बैठे हुए नेपालको चलनेमे मदत करेगा, ऐसी नेपालीयोँकि राय है । विना सँविधानके देशमेँ रहते सब नेपाली उगता चुके थे । क्योँकि ईसकि अनुपस्थितिमेँ बहुत से भ्रष्टाचार, हिँसा और असुरक्षा महशुस होता जा रहा था ।
परन्तु हमेँ यह सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ कि यस सँविधानकेपति आपका सहमति नहिँ रहा । आपने यहाँ तककि अपनी विदेश सचिवको भेजकर सँविधान जारी करनेका दिन रोकनेको कहा । सँविधान सभासे पारित हो चुका सँविधानको बदलना कैसे मुमकिन था । यह कोई उपन्यास तो था नहिँ जो प्रकाशकको पसन्द नआनेपर कुछ बदलियाँ किया जाए । यह सँविधान तो एक बहुत पुरानी और सार्वभौम और स्वतन्त्र राष्ट्र् नेपालका अपनी कमाई थी, अपनी लिखाई थी । ईसमे कोई और दुसरोँको हस्तक्षेप करने क्या अधिकार है? क्या भारतकि आन्तरिक मामलेमेँ कोई बोले, यह भारतको पसन्द आएगी? ऐसेहि बात लागु होती है नेपालकेप्रति भि ।

चलिए मान लिया आपने सँविधानप्रति अपनी सहमति नहिँ दिखाई । बश । बात आई बात गई होती । क्योँकि यह सँविधान नेपालमेँ लागु हो रहिथी । भारतमे नहिँ । सो आपकि नाराजगी आपके साथ । मगर
, बात तो तब बिगडती नजर आई जब नेपाल आनेवाली सारा सामान जिसमे खाद्य पदार्थ, ईन्धन, दवा, उद्योगका कच्चा पदार्थ सब बोर्डरमे रोक दिया गया । यह कहाँका सलुक है? किसने दिया आपको यह अधिकार? रुका हुआ सामानमे नेपालकी पसीनेकी कमाई पडी है । आज १८ दिन हो चुके है नेपाल काकाकुलमेँ पडे हुए । बोर्डरमेँ रुके हुए वह सामान जो हरदिन बिगडति जारही है उसका जिम्मेवार कौन होगा? बेचारा नेपालका व्यापारी या आप?

आप जानते हँै नेपाल भारतपर कितना आश्रित है
? युँ कहिए कि नेपाल भारतसे दैनिक उपभोगकेलिए सारि वस्तुएँ खरिदती है । यहाँतक कि घरमेँ पोतनेवाली चुना भी आपकि भारतसे मगाते हैँ नेपालीलोग । चावल, दाल, नमक, तेल, पेट्रेल, गैस, दवा, मेकअपकि वस्तुएँ । ऐसा समझिए नेपाल न हो तो भारतकि उत्पादनकि २५ प्रतिशत उत्पादनमेँ किडे पर जाएँ । पर भारतकि उद्योगमे नेपालका ईस तरहका योगदानको आप क्यो नहिँ समझ रहे हैँ । कहा जाता है कि आश्रितोँको और सहायता करनी पडती है । लेकिन आप है कि उल्टे हि दबोचते जा रहे हैँ ।

क्या नेपालने हमेशा भारतका कहा मानना पडेगा
? क्या नेपालको आपलोग एक स्वतन्त्र राष्ट्र् जो दुनियाकी किसीसेभी कोईभी किसिमका सम्बन्ध या समझदारी कर सकनेवाली नहिँ लगता? आखिर नेपालसे आपलोगोँको किस बातका डर है । क्या कभी नेपालने आपके विरुद्ध कोई हतियार या आवाज उठाई है? नहिँ । फिर आपलोग नेपालको अपनी पकडमे रखना क्योँ चाहते हैँ? पकड हि नहिँ आपलोग नेपालको दबोचना चाहते हैँ ।

कभीकभी तो मुझे ऐसा भि लगता है कि नेपाल भारतकी ऐसी विवी है जो कमरेमे कैद करके रखा हुआ है । पतिको जब मर्जी आई कमरेमे घुस गया
, उससे सम्भोग किया । न उसे कहिँ बाहर जानेकि ईजाजत है, न उसे किसीसे बोलने कि ईजाजत है । क्या आप नेपालको ईसी तरह समझते हँै? अगर समझते हँै तो कृपया ऐसा समझना छोड देँ तो अच्छा है ।
भाषणोँमे तो आप बहुत अच्छे बोल लेते हैँ । मार्क जुगरबर्गकेसाथ आप जिसदिन सामाजिक सँजाल और अपनी माँके बारेमा बडेबडे और गहन बात कररहेथे उस समय नेपाल ईन्धन, राशन और दवाके विना छटपटा रहि थि । यह आपको ऐहसास नहिँ हुआ मोदीजी? मानलिया आप देशसे बाहर थे । आपको पता नहिँ चला । लेकिन अब तो आप स्वदेश लौट चुके हैँ। फिरभी आपकी चुप्पी क्युँ है । किधर गया आपकी वह बोली जब नेपालमेँ दर्द होगा तो हमेँभी दर्द होगा? क्या वह सब मिथ्या बोली थि?

हमेँ विश्वास करना मुश्किल हो रहा है कि आप वहि मोदि हो जिसने नेपालमेँ भूचाल आनेकि कुछ हि घण्टेमेँ सहायता भेज दिया था । हमेँ विश्वास नहिँ होता आप वहि मोदि हो जिसने नेपालके पहले सँविधान सभामेँ ऐसी मैत्रीपूर्ण भाषण दिया था कि सब नेपाललियोँ के मनम आप धर गए । मगर यह अचानक बदलाव क्योँ । ईसलिए कि नेपालने आपका कहा हुआ जैसी सँविधान नहिँ बनाया
? आपका कहा हुआ जैसा सँविधान किस देशमा है कृपा करके बतादेँगेँ? दूर क्योँ जाएँ । भारतमे हि नहिँ है आपका कहा हुआ जैसा सँविधान । अगर हुआ होता तो सोनिया गाँधी नहिँ होती प्रधानमन्त्री? आपको और भारतीयोँको मालुम है दुनियामेँ ऐसा कहिँ नहिँ होता है । फिर नेपालमेँ क्यो हो?

मोदिजी
, तराई मधेशमे हो रहि आन्दोलनको हम सम्हालेँगे । यह हमारा अपनी समस्याएँ है । हमलोग यहाँ भितर एक आपसमे लड भि सकते हँै और मिल भि सकते हैँ । ईसमे कोई भी तिसरी पक्ष आना स्वाभाविक नहिँ हैँ और बेहतर भि यही है । भारतमेँ ऐसी जातिय समस्याएँ बहुत है । क्या नेपालने कभी कुछ बोला है? क्योँ कि नेपाल अपनी पडोसीको समझती है । आदर करती है । वरना दार्जिलिँगमे हुए गोर्खाल्याण्ड आन्दोलनको नेपालकी सहायता न होती? लेकिन आपलोग नेपालके तराई मधेशके मुद्धेमे खुदको घसिट रहे हैँ । यह कैसी रवैया है?

सो भारतके प्रधानमन्त्रीजी
, आपको हमारा विशेष अनुरोध है कि नेपालके मामलेसे कृपा करके सदाके लिए अपना हाथ उठा लिजिए । हम ईधरके नेताओँको सम्हाल लेँगे ।
धन्यवाद ।